फूटी कौड़ी और भारतीय मुद्रा का ऐतिहासिक सफर
परिचय
“एक भी फूटी कौड़ी नहीं दूंगा!” आपने यह कहावत कई बार सुनी होगी। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि फूटी कौड़ी वास्तव में क्या होती है? यह कहावत हमारे पुराने मौद्रिक इतिहास से जुड़ी हुई है, जब रुपये-पैसे का चलन नहीं था और लेन-देन कौड़ियों के माध्यम से किया जाता था।
इस लेख में हम जानेंगे कि फूटी कौड़ी क्या होती थी, इसका मूल्य क्या था और भारतीय मुद्रा के विकास में इसका क्या योगदान रहा।
फूटी कौड़ी क्या होती थी?
प्राचीन भारत में मुद्रा के रूप में कौड़ियों का उपयोग किया जाता था। कौड़ी एक प्रकार का समुद्री शंख होता है, जिसे पुराने समय में सिक्के के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। यदि कौड़ी टूट जाती थी या उसमें दरार आ जाती थी, तो उसे फूटी कौड़ी कहा जाता था, और इसका मूल्य साबूत कौड़ी से कम हो जाता था।
फूटी कौड़ी से रुपये तक का सफर
1. तीन फूटी कौड़ी = एक साबूत कौड़ी
पुराने समय में तीन फूटी कौड़ियों को मिलाकर एक साबूत कौड़ी माना जाता था। अगर किसी के पास साबूत कौड़ी नहीं होती थी, तो तीन फूटी कौड़ियों को मिलाकर उसका उपयोग किया जाता था।
2. 10 कौड़ी = 1 दमड़ी
बड़े सामान खरीदने के लिए लोगों को अधिक कौड़ियाँ जमा करनी पड़ती थीं। जब 10 कौड़ियाँ इकट्ठी होती थीं, तो वे एक दमड़ी के बराबर मानी जाती थीं।
3. 2 दमड़ी = 1 धेला
अगर किसी को बड़ा लेन-देन करना होता था, तो दो दमड़ी मिलाकर एक धेला बनाया जाता था। धीरे-धीरे धेला मुद्रा का एक महत्वपूर्ण रूप बन गया।
4. 1 धेला = 1 पाई
पुराने समय में एक धेला, एक पाई के बराबर हुआ करता था। पाई भी एक छोटी मुद्रा इकाई थी, जिसका उपयोग छोटी-छोटी खरीदारी के लिए किया जाता था।
5. 3 पाई = 1 पैसा
पैसा आज भी हमारी मुद्रा प्रणाली में मौजूद है, लेकिन पुराने समय में तीन पाई को मिलाकर एक पैसा बनाया जाता था।
6. 4 पैसे = 1 आना
कहावत “चार पैसे जोड़कर अमीर बनना” इसी प्रणाली से आई है। चार पैसे मिलकर एक आना बनता था, जो उस समय की महत्वपूर्ण मुद्रा इकाई थी।
7. 16 आने = 1 रुपया
1960 से पहले, 16 आने मिलाकर एक रुपया बनाया जाता था। यह प्रणाली दशकों तक चलती रही, जब तक कि भारत सरकार ने इसे बदल नहीं दिया।
1957 के बाद भारतीय मुद्रा में बदलाव
साल 1957 में भारत सरकार ने मुद्रा प्रणाली में बड़ा परिवर्तन किया। पुराने आने-पैसे की जगह दशमलव प्रणाली लागू की गई, जिसमें:
- 1 रुपया = 100 पैसे किए गए।
- 25 पैसे (चवन्नी) और 50 पैसे (अठन्नी) का प्रचलन शुरू हुआ।
- धीरे-धीरे चवन्नी और अठन्नी बंद हो गईं और अब केवल रुपया प्रचलन में रह गया।
फूटी कौड़ी से जुड़ी कहावतें और उनका अर्थ
- “फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगा!” – जब कोई किसी को एक भी पैसा देने से इंकार करता है।
- “चार पैसे जोड़ना” – थोड़ा-थोड़ा पैसा बचाकर अमीर बनना।
- “धेला भी नहीं मिलेगा!” – बिल्कुल भी पैसा न देना।
निष्कर्ष
आज हम डिजिटल पेमेंट और ऑनलाइन ट्रांजेक्शन की दुनिया में जी रहे हैं, लेकिन भारतीय मुद्रा का इतिहास बहुत पुराना और रोचक है। एक समय था जब कौड़ियाँ, दमड़ी, धेला, आना और पैसा मुख्य मुद्रा हुआ करते थे। समय के साथ बदलाव आए और रुपये की जगह Decimal प्रणाली ने ले ली।
आपकी राय?
अब जब भी आप “फूटी कौड़ी” की कहावत सुनें, तो समझ लें कि यह हमारे पुराने आर्थिक इतिहास की एक झलक है। आपके अनुसार, कौन-सी पुरानी मुद्रा प्रणाली सबसे दिलचस्प थी? हमें कमेंट सेक्शन में बताइए!
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