Prioritizing Care in India’s Economic Policy: A Necessity

भारत की आर्थिक नीति में देखभाल को प्राथमिकता देना : समय की माँग

प्रासंगिकता एवं परिप्रेक्ष्य

केंद्रीय बजट 2025 में जेंडर बजट (लैंगिक बजट) के लिए ऐतिहासिक रूप से उच्च आवंटन किया गया, जो 37.3% की वृद्धि के साथ कुल बजट का 8.86% तक पहुँच गया। हालांकि, इस वृद्धि का मुख्य कारण कल्याणकारी योजनाओं का विस्तार है, न कि देखभाल अवसंरचना (Care Infrastructure) में कोई सार्थक निवेश। आर्थिक सर्वेक्षणों में बार-बार अवैतनिक देखभाल कार्य के महत्व को स्वीकार किया गया है, फिर भी बजट में इस क्षेत्र को उपेक्षित रखा गया, जिससे महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी प्रभावित होती है।

जेंडर बजट में वृद्धि : मात्रात्मक विस्तार बनाम गुणात्मक सुधार

2025 के बजट में जेंडर बजट के तहत ₹4,49,028.68 करोड़ आवंटित किए गए, जो वित्तीय वर्ष 2024 की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है। हालांकि, इस वृद्धि का अधिकांश भाग प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (24%) जैसे योजनागत व्यय से संबंधित है, जबकि देखभाल के बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए कोई ठोस पहल नहीं की गई।

यह विडंबना है कि सरकार के आर्थिक सर्वेक्षणों ने देखभाल अर्थव्यवस्था की महत्ता को स्वीकार किया, किंतु बजट इसमें आवश्यक संसाधनों का निवेश करने में असफल रहा। यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो महिलाओं की आर्थिक भागीदारी को एक सशक्त आधार प्रदान करना कठिन होगा।

महिलाओं पर अवैतनिक देखभाल एवं घरेलू कार्य (UCDW) का असमान बोझ

  • वैश्विक स्तर पर, महिलाएँ प्रतिदिन अपने 17.8% घंटे अवैतनिक देखभाल कार्यों में व्यतीत करती हैं।
  • भारत में यह अनुपात दक्षिण अफ्रीका और चीन की तुलना में 40% अधिक है।
  • देखभाल संबंधी जिम्मेदारियों के कारण भारत की 53% महिलाएँ श्रम शक्ति से बाहर हैं, जबकि केवल 1.1% पुरुष इस कारण प्रभावित होते हैं।
  • आर्थिक रूप से वंचित महिलाओं के लिए स्थिति और भी विकट है, क्योंकि उन्हें घरेलू कार्य एवं जीविका उपार्जन के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रतिदिन 17-19 घंटे कार्य करना पड़ता है।

वैश्विक दक्षिण (Global South) में महिलाओं पर अतिरिक्त भार

  • अवैतनिक देखभाल कार्यों में जल एवं ईंधन संग्रहण, कृषि कार्य, घरेलू श्रम जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं, जो महिलाओं के लिए समय-संसाधन का भारी व्यय बन जाती हैं।
  • अवसंरचनात्मक अभाव के कारण महिलाएँ अपनी दैनिक ऊर्जा का 73% भाग केवल इन कार्यों में खर्च करती हैं।
  • औसतन, महिलाएँ प्रतिदिन 5 घंटे पानी एकत्र करने में व्यतीत करती हैं, जबकि पुरुषों के लिए यह अवधि केवल 1.5 घंटे है।
  • जलवायु परिवर्तन इस स्थिति को और अधिक जटिल बना रहा है, और अनुमान है कि भारत में जल से संबंधित अवैतनिक श्रम 2050 तक 1.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है।

देखभाल अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने हेतु आवश्यक उपाय

1. अवैतनिक श्रम की मान्यता एवं समावेशी नीतियाँ

  • 2019 के टाइम यूज़ सर्वे में यह उजागर हुआ कि महिलाएँ प्रतिदिन औसतन 7 घंटे अवैतनिक कार्य करती हैं।
  • नीति-निर्माण को अधिक प्रभावी बनाने हेतु घरेलू सर्वेक्षणों में समय-उपयोग (Time-Use) मॉड्यूल को शामिल किया जाना चाहिए।

2. अवैतनिक देखभाल कार्य का बोझ कम करना

  • समय-बचत करने वाली प्रौद्योगिकियों एवं बुनियादी सुविधाओं में निवेश आवश्यक है।
  • जल जीवन मिशन (JJM) को 2028 तक विस्तारित किया गया है, जिसका उद्देश्य 100% पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित करना है, किंतु धन के उचित उपयोग की कमी एवं परियोजना में देरी इसकी सफलता को बाधित कर रही है।
  • महिलाओं की आर्थिक भागीदारी को बढ़ाने के लिए बाल देखभाल केंद्रों, वृद्ध देखभाल सेवाओं एवं सहायक प्रौद्योगिकियों के विस्तार की आवश्यकता है।

3. देखभाल कार्य का पुनर्वितरण

  • देखभाल जिम्मेदारियों को केवल परिवारों तक सीमित न रखते हुए, राज्य की जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी।
  • ₹1 लाख करोड़ का शहरी चुनौती कोष शहरी पुनर्विकास, जल एवं स्वच्छता परियोजनाओं को सहायता प्रदान कर सकता है।
  • भारत स्मार्ट सिटी मिशन जैसी पहलों के माध्यम से देखभाल अवसंरचना के प्रभावी मॉडल विकसित किए जा सकते हैं।
  • कोलंबिया की राजधानी बोगोटा में लागू “केयर ब्लॉक्स” मॉडल से प्रेरणा लेकर भारत में केंद्रीकृत देखभाल सुविधाएँ विकसित की जा सकती हैं। इससे महिलाओं के अवैतनिक श्रम में महत्वपूर्ण कमी आ सकती है।

4. नीति-निर्माण में महिलाओं की प्रभावी भागीदारी

  • निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में महिलाओं की भूमिका सुनिश्चित करना आवश्यक है।
  • महिलाओं को यदि नीति-निर्माण से अलग रखा जाता है, तो अक्सर ऐसी नीतियाँ बनती हैं जो उनकी वास्तविक चुनौतियों को अनदेखा कर देती हैं।

निष्कर्ष : समावेशी विकास के लिए देखभाल कार्य को आर्थिक केंद्र में लाना अनिवार्य

भारत की आर्थिक प्रगति में नारी शक्ति की भूमिका निर्विवाद रूप से महत्वपूर्ण है। किंतु यदि बजट एवं नीतियों में देखभाल कार्य को प्राथमिकता नहीं दी जाती, तो यह असमानता न केवल महिलाओं की श्रमशक्ति भागीदारी को सीमित करेगी, बल्कि समग्र आर्थिक विकास की गति को भी बाधित करेगी।

  • देखभाल कार्य को केवल पारिवारिक जिम्मेदारी के रूप में न देखा जाए, बल्कि इसे राज्य की सामूहिक जवाबदेही का हिस्सा बनाया जाए।
  • महिला श्रम शक्ति को बढ़ाने हेतु बुनियादी सेवाओं, सहायक अवसंरचना एवं संवेदनशील नीतियों का निर्माण किया जाए।
  • जेंडर बजट को मात्र कल्याणकारी योजनाओं तक सीमित रखने के बजाय, इसे महिलाओं की वास्तविक आर्थिक मुक्ति का माध्यम बनाया जाए।

आपकी राय क्या है?

क्या आप मानते हैं कि भारत की आर्थिक नीतियों में देखभाल कार्य को और अधिक महत्व दिया जाना चाहिए? क्या आपके क्षेत्र में ऐसी कोई पहल हो रही है जो महिलाओं के देखभाल कार्य का बोझ कम कर सके? हमें अपने विचार कमेंट सेक्शन में बताइए!

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