Electoral Integrity at Risk: Examining Changes in the Appointment of Election Commissioners

निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया पर मंडराते संशय: चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में बदलाव की पड़ताल

परिचय

भारत के लोकतांत्रिक तंत्र में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सर्वोपरि हैं, और इसे सुनिश्चित करने में चुनाव आयोग (Election Commission of India – ECI) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। वर्ष 2023 में केंद्र सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों (ECs) की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव करते हुए एक नया क़ानून लागू किया, जिससे चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े हो गए हैं।

पृष्ठभूमि और विधायी परिवर्तन

पूर्व में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सिफारिश पर मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करते थे। इस प्रक्रिया को न्यायपालिका ने संवैधानिक संतुलन के दृष्टिकोण से अपर्याप्त माना, क्योंकि यह कार्यकारी सत्ता को अत्यधिक नियंत्रण प्रदान करता था।

मार्च 2023 में, सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 324(5) के अंतर्गत एक संतुलित चयन प्रक्रिया की अनुशंसा की। इसके बावजूद, सरकार ने एक नया क़ानून पारित किया, जिसमें चयन प्रक्रिया को कार्यपालिका के प्रभाव में रखा गया, जिससे इस कानून की वैधता और निष्पक्षता पर बहस छिड़ गई।

नए कानून की प्रमुख विशेषताएँ

1. चयन समिति का पुनर्गठन

  • नई चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता (LoP) और एक कैबिनेट मंत्री (जो प्रधानमंत्री द्वारा चुना जाएगा) को शामिल किया गया।
  • भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को इस चयन पैनल से हटा दिया गया, जो न्यायिक संतुलन को कमजोर करता है।

2. खोज समिति का गठन

  • विधि मंत्री एवं दो वरिष्ठ नौकरशाहों की अध्यक्षता में एक खोज समिति बनाई गई, जो योग्य उम्मीदवारों की सूची तैयार करने की जिम्मेदार होगी।

3. अंतिम चयन प्रक्रिया

  • चयन पैनल के बहुमत के आधार पर चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की जाएगी, जिससे सरकार समर्थित उम्मीदवार की नियुक्ति की संभावनाएँ अधिक हो जाती हैं।

संवैधानिक चिंताएँ और संभावित खतरे

1. चयन प्रक्रिया में निष्पक्षता का ह्रास

  • प्रधानमंत्री और उनके द्वारा नामित कैबिनेट मंत्री की उपस्थिति से चयन पैनल में सरकार का बहुमत सुनिश्चित होता है।
  • चूँकि विपक्ष के नेता अल्पमत में रहते हैं, उनकी आपत्तियाँ चयन प्रक्रिया पर असर नहीं डाल सकतीं।

2. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों पर प्रभाव

  • भारत के निर्वाचन आयोग का दायित्व है कि वह 960 मिलियन से अधिक मतदाताओं की स्वतंत्रता सुनिश्चित करे।
  • यदि आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी नहीं होगी, तो चुनावी निष्पक्षता पर प्रश्न उठेंगे।

3. संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार) का संभावित उल्लंघन

  • लोकतंत्र में निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है।
  • यह कानून सरकार को निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता पर नियंत्रण प्रदान कर सकता है, जिससे संविधान की भावना प्रभावित होती है।

4. सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा की आवश्यकता

  • न्यायालय को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह विधि संविधान के सिद्धांतों के अनुरूप है या नहीं।
  • विपक्षी दलों और नागरिक संगठनों ने इसकी संवैधानिकता की न्यायिक समीक्षा की माँग की है।

निष्कर्ष

नए कानून ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में निष्पक्षता और स्वतंत्रता को संदेह के घेरे में ला दिया है। यदि इस विधि को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्यायिक समीक्षा के बिना लागू किया जाता है, तो यह लोकतांत्रिक चुनावी प्रणाली की पारदर्शिता को प्रभावित कर सकता है। निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित करने के लिए संतुलित चयन प्रक्रिया आवश्यक है, जिससे चुनाव आयोग कार्यपालिका से स्वतंत्र रह सके और अपने संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन निष्पक्ष रूप से कर सके।

आपकी राय क्या है?

क्या आपको लगता है कि यह नया कानून भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को प्रभावित करेगा? अपनी राय नीचे कमेंट सेक्शन में साझा करें!

Stay Connected with Us!

Follow us for updates on new courses, offers, and events from Saint Joseph’s Academy.

Don’t miss out, click below to join our channel:

Follow Our WhatsApp Channel

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top