पोंगल: प्रकृति, फसल और सामाजिक सौहार्द को समर्पित चार दिवसीय सांस्कृतिक पर्व
(परीक्षार्थियों के लिए विशेष उपयोगी, सांस्कृतिक एवं तथ्यात्मक रूप से सटीक लेख)
भारत अपनी सांस्कृतिक विविधता और परंपराओं के कारण विश्व का एक अद्भुत और वैभवशाली देश कहलाता है। यहाँ हर मौसम, हर ऋतु, और हर फसल के साथ उत्सवों की झड़ी लग जाती है। जब विश्व के अनेक देश तकनीक और भौतिक संसाधनों में आत्मलीन होते जा रहे हैं, भारत आज भी आंतरिक प्रसन्नता, मानसिक संतुलन और सामाजिक आत्मीयता को सर्वोपरि मानता है। इसी भावना की एक जीवंत अभिव्यक्ति है दक्षिण भारत का प्रसिद्ध त्योहार — पोंगल।
यह उत्सव न केवल फसल की कटाई के समय प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करता है, बल्कि पारिवारिक मेल-मिलाप और सामाजिक सौहार्द का भी प्रतीक है। विशेषतः तमिलनाडु में मनाया जाने वाला यह पर्व चार दिनों का होता है और इसकी शुरुआत प्रायः 14 जनवरी से होती है।
जहाँ भारत के अन्य क्षेत्रों में मकर संक्रांति, लोहड़ी या भीमथड़ी जत्रा जैसे त्योहार मनाए जाते हैं, वहीं तमिल समुदाय में पोंगल का विशेष स्थान है। भारत ही नहीं, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर और अमेरिका सहित जहाँ-जहाँ तमिल प्रवासी हैं, वहाँ यह पर्व अत्यंत श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है।
चार दिवसीय पोंगल उत्सव का विस्तृत परिचय
पहला दिन: भोगी पोंगल
इस दिन पुरानी चीजों, नकारात्मक विचारों, और बीते हुए तनावों को त्यागने का प्रतीकात्मक उत्सव मनाया जाता है। घरों की सफाई कर पुरानी वस्तुओं को जलाया जाता है — यह केवल शारीरिक नहीं, मानसिक और आत्मिक शुद्धिकरण का प्रतीक है।
यह दिन इंद्र देवता को समर्पित होता है, जिनसे वर्षा और कृषि-समृद्धि की प्रार्थना की जाती है। वहीं, यह भी मान्यता है कि इस दिन से ठंडक घटनी शुरू होती है — इसलिए इसे नूतन ऊर्जा का प्रारंभ भी माना जाता है।
दूसरा दिन: सूर्य पोंगल (थाई पोंगल)
यह इस पर्व का मुख्य दिन होता है, जिसे थाई पोंगल भी कहते हैं। यह दिन सूर्य देव को समर्पित है। इसी दिन प्रसिद्ध व्यंजन “पोंगल” बनाया जाता है — जिसमें चावल, दूध, गुड़, काजू, किशमिश और घी के स्वादिष्ट संगम से एक अनुपम मिठास उत्पन्न होती है।
धूप में घरों के आंगन सजाए जाते हैं, और रंगोली (कोलम) से घर को सुसज्जित किया जाता है। घर की महिलाएं विशेष व्रत रखती हैं और सूर्य को धन्यवाद देती हैं।
तीसरा दिन: मट्टु पोंगल
इस दिन किसानों के जीवनसाथी माने जाने वाले गायों और बैलों की पूजा होती है। उन्हें सजाया जाता है, उनके सींग रंगे जाते हैं, और उन्हें गुड़, केला, नारियल खिलाया जाता है।
यह दिन पशुओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का दिन है — जो कृषि-जीवन का अभिन्न अंग हैं।
तमिलनाडु के कुछ क्षेत्रों में इस दिन प्रसिद्ध जल्लीकट्टु कार्यक्रम भी होता है, जिसमें पारंपरिक रूप से युवा लोग सांडों को काबू में करने की स्पर्धा करते हैं। हालांकि इसे लेकर कुछ कानूनी विवाद भी रहे हैं।
चौथा दिन: कानुम पोंगल
इस अंतिम दिन को सामाजिक मिलन और रिश्तों की मिठास के रूप में मनाया जाता है। परिवारजन, मित्रगण, पड़ोसी — सभी एक-दूसरे के घर जाते हैं, पोंगल व्यंजन बांटते हैं और प्रकृति की गोद में पिकनिक मनाते हैं।
यह दिन यह संदेश देता है कि समृद्धि केवल धन या अन्न में नहीं, बल्कि आत्मीयता और मेल-जोल में भी होती है।
परीक्षार्थियों के लिए विशेष तथ्य
- पोंगल कोई वैदिक त्योहार नहीं है, लेकिन इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यंत गहरा है।
- जल्लीकट्टु का प्रमाण संगम युग (ईसा पूर्व तीसरी सदी) से मिलता है, जिसे एरुधु कट्टू कहा जाता था।
- पोंगल व्यंजन को दूध के उफान के साथ बनाना शुभ माना जाता है — क्योंकि “पोंग” का अर्थ है ‘उफान’, जो समृद्धि का प्रतीक है।
- थाई महीने की शुरुआत मानी जाती है — तमिल पंचांग के अनुसार, इसे शुभ प्रारंभ माना जाता है।
निष्कर्ष
पोंगल केवल एक कृषि पर्व नहीं, बल्कि जीवन के प्रति आभार, प्रकृति के प्रति प्रेम और सामाजिक संबंधों की मिठास को पुनः स्मरण करने का पर्व है। इस चार दिवसीय पर्व में केवल खाना-पीना या उत्सव नहीं, बल्कि आस्था, पर्यावरण, परिश्रम और परंपरा का गहरा संदेश निहित है।
आपका क्या विचार है?
क्या आपको लगता है कि पोंगल जैसे त्योहार आज के समय में समाज को जोड़ने और पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने में सहायक हैं? नीचे कमेंट में अपनी राय ज़रूर बताइए!
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